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शराब पर ‘हजारों’ खर्च, कुल्हड़ के ’30’ रुपये भारी !! करनाल में खत्म होती परंपरा…कढ़ाही के दूध की मिठास अब केवल यादों में

प्रवीण वालिया-करनाल, India News (इंडिया न्यूज), Karnal News : बदलते दौर के साथ करनाल की परंपराएं भी पीछे छूटती जा रही हैं। कभी कढ़ाही के दूध की खुशबू से महकता यह शहर अब चाइनीज फूड और शराब की दुकानों से घिर गया है। दो सौ साल पुरानी कुल्हड़ में दूध पीने की परंपरा अब लगभग खत्म हो चुकी है। करनाल में अब सिर्फ एक दुकान बची है, जहां यह परंपरा अभी भी जीवित है।

मुरारी लाल जायसवाल, जो 1972 से यह दुकान चला रहे हैं, बताते हैं कि पहले देर रात तक भीड़ लगी रहती थी। आज सिर्फ बुजुर्ग ही आते हैं। बच्चे अब पिज़्ज़ा और सॉफ्ट ड्रिंक पसंद करते हैं, लेकिन कढ़ाही का दूध उन्हें ‘पुराना’ लगता है। उन्होंने दुख जताया कि लोग हजारों रुपये शराब पर खर्च कर देते हैं, लेकिन कुल्हड़ के 30 रुपये के दूध को महंगा समझते हैं।

हरियाणा की शान था दूध-दही का स्वाद

सालों पहले करनाल ही नहीं, बल्कि पूरा हरियाणा दूध-दही के खानपान के लिए प्रसिद्ध था। मोहल्लों और बाजारों में जगह-जगह दूध-दही की दुकानें होती थीं। सुबह लोगों की दिनचर्या जलेबी और दूध से शुरू होती थी और रात को बाजारों में कुल्हड़ में गर्म दूध पीने की परंपरा थी।

कढ़ाही के दूध की जगह चाइनीज फूड और शराब

समय के साथ खानपान की प्राथमिकताएं बदलीं और कढ़ाही के दूध की जगह अब करनाल में चाइनीज फूड और शराब की आलीशान दुकानों ने ले ली है। कभी 15 से अधिक स्थानों पर मिलने वाला कढ़ाही का दूध अब मात्र एक स्थान तक सिमट गया है।

तीन पीढ़ियों से जारी परंपरा अब अंतिम दौर में

वर्तमान में करनाल में केवल एक ही दुकान बची है, जहां कढ़ाही का दूध मिलता है। यह दुकान मुरारी लाल जायसवाल चला रहे हैं, जिनके बेटे कमलकांत जायसवाल और पोते भी इस परंपरा को संजोए हुए हैं। 1972 से चल रही यह दुकान अब भी कुछ बुजुर्ग ग्राहकों की पसंद बनी हुई है। मुरारी लाल बताते हैं कि एक समय था जब रातभर उनकी दुकान पर लोगों की भीड़ लगी रहती थी, लेकिन अब बच्चों और युवाओं को यह दूध पसंद नहीं आता।

अब सिर्फ यादें शेष हैं

जानकारों के अनुसार, करनाल में कभी दयालपुरा गेट, नॉवेल्टी रोड सहित कई स्थानों पर कढ़ाही का दूध मिलता था, लेकिन अब इन सभी जगहों की दुकानें बंद हो चुकी हैं। मुनाफा न होने के कारण दुकानदारों ने यह व्यवसाय बंद कर दिया। लोग अब न तो पौष्टिक चीजें खाना चाहते हैं, न ही पुरानी परंपराओं को सहेजना।

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