India News (इंडिया न्यूज), Kumari Selja : सांसद कुमारी सैलजा न हरियाणा की भाजपा सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि आयुष्मान भारत योजना का मूल उद्देश्य गरीब परिवारों को नि:शुल्क व गुणवत्तापूर्ण इलाज देना था, परन्तु राज्य में यह योजना सरकारी उपेक्षा और वित्तीय कुशासन की भेंट चढ़ गई है। सांसद का आरोप है कि भुगतान में लगातार देरी और बजट आवंटन की कमी के कारण निजी अस्पताल आयुष्मान कार्ड धारकों के इलाज से हाथ खींच रहे हैं, जिससे जरूरतमंद मरीजों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है।
मीडिया को जारी बयान में सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार सबसे बड़ी बताकर योजना का प्रचार तो करती है, पर बुनियादी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं करती। सरकार ने इसके लिए करीब 700 करोड़ का बजट रखा है जबकि मरीजों की संख्या को देखते हुए निजी अस्पताल संचालकों ने बजट कम से कम 2000 करोड़ रुपये रखने की मांग की थी, इस आयुष्मान भारत योजना के तहत करीब तीन लाख मरीज ईलाज करा चुके हैं।
सांसद ने कहा कि मरीजों की संख्या 45 प्रतिशत बढ़ी है तो उसी आधार पर बजट भी बढ़ाना चाहिए। सांसद ने कहा कि इस योजना के तहत 1300 अस्पताल सूचीबद्ध है जिनमें से 675 निजी अस्पताल है और शेष सरकारी है। सरकार निजी अस्पताल संचालकों के बिलों का भुगतान समय पर नहीं कर रही है और जो भी बिल जाते है उनमें मनमाने ढंग से कटौती की जा रही है। निजी अस्पताल संचालक चार बार बकाया भुगतान की मांग को लेकर उपचार बंद कर चुके हैं।
सांसद कुमारी सैलजा ने कहा है कि अस्पतालों को समय पर बकाया नहीं मिल रहा, जिसके चलते कई अस्पतालों ने कार्डधारकों के लिए दवाइयों, सर्जरी और भर्ती तक पर रोक लगा दी है। सांसद ने कहा कि गरीब मरीज अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें काउंटर पर ‘क्लेम रुका है’ या ‘लिमिट पूरी’ जैसे जवाब मिलते हैं। यह सीधे-सीधे गरीब की सेहत से खिलवाड़ है। उधर सरकार 3,050 करोड़ रुपये जारी करने का दावा करती रही है पर हकीकत यह है कि अधिकतर अस्पताल अभी भी भुगतान का इंतज़ार कर रहे हैं।
चिकित्सक संगठनों का भी कहना है कि उन्हें बार-बार अपने ही वैध दावों के लिए हाथ फैलाने पड़ते हैं, जिससे सेवा प्रदान प्रभावित होता है और विश्वास घटता है। यह स्थिति केवल निजी क्षेत्र तक सीमित नहीं है। बड़े सरकारी संस्थानों में भी स्टाफ-घाटा, उपकरणों के रख-रखाव और दवा-आपूर्ति में व्यवधान जैसी समस्याएं बनी हुई हैं। पीजीआई जैसे संस्थानों में भी कई वार्ड खाली पड़े हैं, क्योंकि रेफरल और क्लेम-प्रोसेसिंग की जटिलताएं मरीजों को रोक देती हैं। राज्य को स्वास्थ्य के मोर्चे पर ‘कागजी उपलब्धियों’ से आगे बढऩा होगा।
सांसद कुमारी सैलजा ने सरकार से मांग की कि 30 दिनों के भीतर सभी लंबित भुगतान निपटाए जाए, अस्पतालों के साथ एंपैनलमेंट की शर्तें सरल व स्पष्ट की जाए, क्लेम निपटान की टाइमलाइन कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाई जाए, और प्रत्येक जिले में आयुष्मान हेल्प डेस्क को 24×7 सक्रिय रखा जाए। लाभार्थियों के लिए बहुभाषी हेल्पलाइन और एक पारदर्शी डैशबोर्ड अनिवार्य किया जाए, ताकि हर कार्डधारक अपने क्लेम की स्थिति रियल टाइम देख सके।
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