How To Choose Right Life Partner
India News (इंडिया न्यूज), How To Choose Right Life Partner: प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज, जिनके पास देशभर से लोग अपनी उलझनों का समाधान पाने आते हैं, उन्होंने हाल ही में शादी को लेकर पूछे गए दो अहम सवालों का जवाब बड़े ही सरल और आध्यात्मिक अंदाज में दिया। एक युवती ने उनसे पूछा कि शादी के लिए सही पति कैसे चुनें, वहीं एक युवक जानना चाहता था कि शादी से पहले जीवनसाथी से कौन से सवाल पूछना सही रहेगा। दोनों सवालों के जवाब में संत प्रेमानंद जी ने जीवनसाथी चुनने के आध्यात्मिक और नैतिक पक्ष को स्पष्ट किया।
संत प्रेमानंद जी ने कहा कि शादी के लिए सही जीवनसाथी चुनने से पहले सबसे जरूरी है खुद का आत्ममंथन। उनका कहना था कि जब तक हम खुद पवित्र, संयमी, सुशील और सज्जन नहीं बनते, तब तक पवित्र जीवनसाथी की कामना करना व्यर्थ है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे रामायण में माता सीता ने मां गौरी से अपने योग्य वर की कामना की थी, वैसे ही हमें भी भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें एक पवित्र और धार्मिक जीवनसाथी मिले।
उन्होंने बताया कि सुंदर और संस्कारी जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा आवश्यक है। उन्होंने युवाओं को सुझाव दिया कि वे सोमवार का व्रत रखें और शिव-पार्वती से प्रार्थना करें कि उन्हें एक आदर्श जीवनसाथी मिले जो उनके धर्मिक और मानसिक स्तर के अनुरूप हो।
शादी से पहले पूछे जाने वाले सवालों को लेकर उन्होंने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की बजाय आत्मिक सोच को प्राथमिकता दी। जब एक युवक ने पूछा कि शादी से पहले जीवनसाथी से कौन से सवाल पूछें, तो संत प्रेमानंद जी ने उत्तर दिया कि केवल सवाल पूछकर किसी के स्वभाव या चरित्र को नहीं परखा जा सकता। उन्होंने कहा कि कोई भी झूठ बोल सकता है, ऐसे में सवालों की जगह खुद को तैयार करना अधिक जरूरी है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि शादी के लिए सबसे पहले खुद को संयमी और ब्रह्मचारी बनाना चाहिए। जब व्यक्ति स्वयं पवित्र होगा, तभी वह भगवान से यह प्रार्थना कर सकता है कि उसे वैसा ही जीवनसाथी मिले। संत ने कहा कि जब एक बार आप किसी का हाथ थाम लेते हैं, तो फिर पूरी निष्ठा और प्रेम से उसी के प्रति समर्पित हो जाएं। पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण सबसे जरूरी है। संत प्रेमानंद जी के अनुसार, यदि हम सच में भगवान की कृपा से एक अच्छा जीवनसाथी पाना चाहते हैं, तो बाहरी प्रश्नों से अधिक जरूरी है आंतरिक शुद्धता। क्योंकि वही व्यक्ति हमारे जीवन में आता है जो हमारे संस्कारों और इच्छाओं के अनुरूप होता है।
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