amrita pritam biography
amrita pritam biography : प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार अमृता प्रीतम उन शख्सियतों में शुमार हैं, जिनकी कृतियों से पाठक हमेशा जुड़ा रहेगा। उनके लिखे नगमों को हमेशा गुनगुनाता रहेगा। 31 अगस्त, 1919 को पाकिस्तान (तब अविभाजित भारत) के पंजाब प्रांत में जन्मीं अमृता प्रीतम ने भले ही अपनी रचनाएं पंजाबी भाषा में लिखीं, लेकिन अपनी लेखनी के दम पर वह भारत की अन्य भाषाओं के पाठकों तक भी पहुंच गईं। उनकी लेखनी ऐसी थी कि वह पाकिस्तान में भी लोकप्रिय रहीं और भारत में भी उनके साहित्य का सिक्का चला। यही वजह है कि उन्होंने पंजाबी साहित्य में 6 दशकों तक राज किया। बेशक उन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। अनूदित पुस्तकों की बात करें तो उन्हें हिंदी में भी अच्छा सम्मान मिला। अमृता प्रीतम के साहित्य सृजन की बात करें तो उन्होंने करीब 100 पुस्तकों की रचना की, जिनमें उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। यह ऐसी पुस्तक है, जिसका रसास्वादन हिंदी की पाठक-साहित्य प्रेमियों ने जरूर किया होगा। उन्हें ज्ञानपीठ पुस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया। साहित्य सृजन के इतर उनकी निजी जिंदगी में कई बार तूफान आए। यही वजह है कि उनका साहित्य जितना चर्चित हुआ उतनी ही निजी जिंदगी रोचक और रहस्य से भरी रही। इस स्टोरी में चर्चा करेंगे उनके साहित्य और उनकी निजी जिंदगी के बारे में।
मोहब्बत का अंजाम किसी को हासिल कर लेना है तो आखिर क्यों अधूरी प्रेम कहानियां अमर हो जाती हैं? हैरत की बात यह भी है कि कामयाब प्रेम कहानियों को जमाना भूल जाता है, लेकिन अधूरी प्रेम कहानियां सदियों याद रहती हैं। पंजाबी और हिंदी की कामयाब कवयित्री और चर्चित उपन्यासकार अमृता प्रीतम (Indian novelist and poet) की अधूरी प्रेम कहानी ऐसा ही अधूरा अफसाना है, जो सदियों तक याद रखा जाएगा और फंसाना बनकर लोगों के जेहन में रहेगी। कहने को अमृता की जिंदगी में 4 पुरुष आए, लेकिन उन्होंने जिसे चाहा वही नहीं मिला। यही वजह है कि उनकी बतौर साहित्यकार तो जिंदगी मुकम्मल रही, लेकिन वह निजी जिंदगी में प्यार से महरूम रहीं। अमृता प्रीतम ने महान शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी से प्यार किया, लेकिन वह मिल ना सके। प्यार तो साहिर भी अमृता से बहुत करते थे, लेकिन वह इतनी हिम्मत ना हासिल कर सके कि वह इस मोहब्बत को अंजाम तक पहुंचा पाते। आलोचक तो यह भी कहते हैं कि साहिर भी अमृता से बहुत प्यार करते थे, लेकिन सुधा मल्होत्रा की वजह से दिल इस कदर टूटा था कि शादी करने की हिम्मत ना जुटा सके। अमृता और साहिर की मोहब्बत का यही अफसाना अब एक ऐसी अधूरी प्रेम कहानी बन चुका है, जिसे भूलना नामुमकिन नहीं।
1947 में भारत का बंटवारा हुआ तो लाखों परिवार मुसीबत में फंस गए। आर्थिक संकट तो पैदा हुआ ही, साथ ही इज्जत-आबरू भी लुटी। भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना तो दोनों ओर से लोग एक-दूसरे देश में गए। इस दौरान एक अनुमान के मुताबिक, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध जितने लोग इस बंटवारे में मारे गए। तबाही का मंजर ऐसा कि लाशों से लदे ट्रेन के डिब्बे देखकर कर्मचारी-अधिकारी सिहर जाते थे। हैवानियत का ऐसा नंगा नाच शायद ही किसी देश में बंटवारे के दौरान हुआ हो। बंटवारा तो जर्मनी और चेकोस्लोवाकिया का भी हुआ, लेकिन बड़ी ही शांति से। खैर, भारत विभाजन का दर्द अमृता प्रीतम ने भी सहा। पंजाब में रहने के दौरान उन्होंंने इस दर्द को बहुत करीब से महसूस भी किया था। भारत के बंटवारे और पाकिस्तान के बनने और उसके बाद पैदा हुआ हालात पर अमृता प्रीतम की कलम जमकर चली। पाठक उनकी कहानियों और उपन्यासों में बंटवारे का दर्द को महसूस कर सकते हैं। कहानियों और उपन्यासों में बंटवारे के दौरान महिलाओं की पीड़ा और वैवाहिक जीवन के कटु अनुभव पाठकों को द्रवित कर देते हैं। अमृता प्रीतम ने अपने मशहूर उपन्यास ‘पिंजर’ में बंटवारे का दर्द एक तरह से उड़ेल दिया है। ‘पिंजर’ उपन्यास पढ़ने के दौरान पाठक भारत के बंटवारे के दर्द को विजुअलाइज कर लेते हैं। इस उपन्यास की पात्र पूरो और रशीद किन संबंधों को जीते हैं, इसका चित्रण अद्भुत है। मुस्लिम रशीद पूरो का अपहरण कर लेता है। जब वो रशीद के घर से अपने माता-पिता के घर भागती है तो उसके माता-पिता उस लड़की को अपवित्र मानते हुए वापस लेने से इन्कार करते हैं। पिंजर को भारत के विभाजन की पृष्ठभूमि के साथ लिखे गए सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति में से एक माना जाता है। इस रचना को पढ़ने के दौरान ऐसा लगता है कि पाठक के सामने सारे पात्र गुजरते हैं।
अमृता प्रीतम और सहिर की मोहब्बत में उलझन बहुत है। यह उलझन ही रहस्यमय दास्तान बन गई, जो अब तक अनसुलझी है। दरअसल, अमृता की शादी 16 वर्ष की उम्र में ही प्रीतम सिंह के साथ हो गई। अमृता ने 1935 में किशोऱ उम्र में लाहौर के अनारकली बाज़ार के एक होजरी व्यापारी के बेटे प्रीतम सिंह से शादी की थी या कहें कर दी गई थी। यह शादी टूट गई, क्योंकि अमृता अपने पति प्रीतम सिंह की हो ना सकीं। यह बात अलग है कि पति प्रीतम सिंह अमृता को बेहद प्यार करते थे। प्रीतम सिंह और अमृता के दो बच्चे हुए। दोनों के बीच प्यार नहीं था, इसलिए अमृता पहली ही मुलाकात में मशहूर शायर और फिल्म गीतकार साहिर लुधियानवी से इश्क कर बैठीं। इससे पहले अमृता और प्रीतम सिंह की शादी टूट गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमृता प्रीतम की साहिर लुधियानवी साहब से पहली मुलाकात एक मुशायरे के दौरान हुई थी। कहा जाता है कि अमृता शायर साहिर के नगमे सुनने के दौरान ही उन पर अपना दिल हार बैठीं। यह प्यार ताउम्र रहा। प्यार तो साहिर भी करते थे अमृता से, लेकिन एक ‘डर’ की वजह से वह शादी नहीं कर सके। साहिर लुधियानवी पहले ही सुधा मल्होत्रा के साथ अधूरे रिश्ते की चोट खा चुके थे। ऐसी चोट खा चुके थे कि उसका ग़म उम्र भर रहा। साहिर दरअसल, गायिका सुधा मल्होत्रा से मोहब्बत करते थे लेकिन जब उन्होंने शादी का प्रस्ताव किया तो उनके पिता ने मना कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि तुम मुसलमान हो और यह शादी मुमकिन नहीं। इसके चलते साहिर का दिल टूटा और ऐसा टूटा कि वह उनके नगमों और गजलों में ढल गया। वहीं, एक तरह से साहिर लुधियानवी से मोहब्बत करने वालीं अमृता ने अपनी कई रचनाओं में इस रिश्ते को लेकर लिखा है। अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा, ‘रसीदी टिकट’ में भी अपने और साहिर साहब के प्यार के बारे में लिखा है। किताब ‘सुनेहड़े’ के लिए अमृता को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। इस किताब में साहिर लुधियानवी के लिए अमृता प्रीतम की कविताएं हैं। अमृता तो चाहती थी शादी कर लें, लेकिन साहिर ही तैयार नहीं हुए।
साहिर से मोहब्बत के दौरान ही इमरोज़ ((इंद्रजीत सिंह)) लेखिका अमृता की जिंदगी में आए। इमरोज अमृता से प्यार करते थे, जबकि वह तो पूरे जीवन साहिर से प्यार करती रहीं। अमृता प्रीतम और इमरोज़ की मुलाकात दिल्ली में हुई थी। दरअसल, अमृता उन्हें एक चित्रकार के रूप में जानती थीं। एक किताब के कवर पेज के सिलसिले में दोनों की मुलाकात हुई। कुछ समय बाद बिना शादी के ही इमरोज और अमृता साथ में रहने लगे, जिसे लिव इन का नाम दिया जाता है। उमा त्रिलोक द्वारा लिखित पुस्तक में जिक्र है कि अमृता कई बार इमरोज़ से कहतीं- ‘अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते।’ अमृता इमरोज़ से अक्सर इस तरह के सवाल पूछती थीं, क्योंकि इमरोज़ अमृता की ज़िंदगी में बहुत देर से आए थे। उनके दो बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी। कवि साहिर लुधियानवी के लिए उनके मन में एकतरफा लगाव था। रसीदी टिकट (राजस्व टिकट) में अमृता ने इमरोज का जिक्र किया है। इमरोज़ रात 1 बजे भी जागकर या जागते रहकर अमृता प्रीतम के लिए चाय बनाते थे। दरअसल, अमृता रात में लिखना पसंद करती थीं। उस समय उन्हें चाय चाहिए होती थी। जानकारों की मानें तो इमरोज़ ने यह जिम्मेदारी हमेशा निभाई। इसके बाद बिना किसी बदले की इच्छा के अमृता का साथ दिया। साथ रहने के दौराम अमृता की पेंटिंग इमरोज़ ही बनाते। इसके साथ ही वह अमृता की किताबों के कवर भी डिजाइन करते।
अमृता ने इंद्रजीत इमरोज़ के साथ अपने जीवन के अंतिम 40 वर्ष बिताए। इतने अधिक समय तक साथ रहने वालीं अमृता ने ‘तैनू फ़िर मिलांगी’ भी लिखी है, जिसे आज भी गुनगुनाया जाता है। तैनू फ़िर मिलांगी, कित्थे ? किस तरह पता नई। शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के। तेरे केनवास ते उतरांगी। जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते, इक रह्स्म्यी लकीर बण के खामोश तैनू तक्दी रवांगी। जा खोरे सूरज दी लौ बण के तेरे रंगा विच घुलांगी, जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के। उनकी जिंदगी के ऊपर एक किताब भी है ‘अमृता इमरोज़: एक प्रेम कहानी’। सच तो यह है कि अमृता शायर साहिर लुधियानवी से प्यार करती थीं और इमरोज कलाकार और पेंटर इमरोज अमृता से इश्क करते थे। यह लव ट्रायएंगल था। एक सच यह भी है और इसका जिक्र अक्सर किया जाता है कि इमरोज के पीछे स्कूटर पर बैठी अमृता सफर के दौरान खयालों में गुम होतीं तो इमरोज की पीठ पर अंगुलियां फेरकर ‘साहिर’ लिख दिया करती थीं। हैरत की यह है कि यह बात इमरोज जानते थे। 31 अक्टूबर 2005 को दुनिया को अलविदा कहने वालीं अमृता की मोहब्बत का अफसाना उसी तरह जिंदा रहेगा जिस तरह उनकी कृतियां लोगों के दिलों में रहेंगीं।
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