Nepal Protest: नेपाल में केपी शर्मा ओली सरकार के खात्मे के बाद एक नई व्यवस्था के संकेत मिल रहे हैं। ओली को खुले तौर पर चीन समर्थक नेता माना जाता है। वहीँ, उनकी सरकार के पतन को चीन की हार के रूप में देखा जा रहा है। इसी वजह से माना जा रहा है कि नए पीएम अमेरिका के करीबी हो सकते हैं। साथ ही, यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि नेपाल में एक बार फिर हिंदू राजशाही की वापसी हो सकती है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र विक्रम शाह को देश का नया संरक्षक बनाया जा सकता है।
नेपाल लंबे समय से सुलग रहा था
बता दें, नेपाल में विरोध प्रदर्शनों की ज़मीन लंबे वक्त से तैयार हो रही थी। बीते साल हुए राजशाही समर्थक प्रदर्शनों को इसकी शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। इन प्रदर्शनों में भारी संख्या में लोगों ने भी हिस्सा लिया था। हालाँकि, पहले पुष्प कमल दहल प्रचंड और बाद में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकारों ने इन प्रदर्शनों पर बलप्रयोग कर कुचल दिया था। तभी से यहां के लोगों में गुस्सा भरा हुआ था, जो Gen Z प्रदर्शनकारियों के रूप में फूट पड़ा।
राजशाही के समर्थन में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी
नेपाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरपीपी) खुले तौर पर राजशाही का समर्थन कर रही है। बताया जा रहा है कि देश में राजशाही समर्थक ज़्यादातर आंदोलनों को इसी पार्टी का समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरपीपी) नेपाल की एक संवैधानिक राजतंत्रवादी और हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी है, जिसकी स्थापना 1990 में हुई थी और जिसका लक्ष्य राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राज्य घोषित करना है। आरपीपी के वर्तमान अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन हैं और यह नेपाल की प्रतिनिधि सभा में पाँचवीं सबसे बड़ी पार्टी है।
नेपाल में लोग सरकारों से नाखुश हैं
नेपाल की जनता लोकतांत्रिक सरकारों से नाखुश है। इसकी मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता, नेताओं के बीच आपसी कलह, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद है। जिसके कारण आम लोगों को वह सब कुछ नहीं मिल पा रहा है जिसके वे हकदार हैं। नेपाल में गरीबी आज भी कायम है। लोग पलायन करने को मजबूर हैं। विकास कार्यक्रम ठप पड़े हैं। सरकारी नौकरियाँ भी नहीं निकल रही हैं।
नेपाल की सबसे बड़ी समस्या राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल में 17 साल पहले राजशाही को खत्म करके लोकतंत्र लागू किया गया था। तब से अब तक देश में 14 सरकारें सत्ता में आई हैं, लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा 5 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। केपी शर्मा ओली चार बार इस पद पर आसीन हुए हैं। पुष्प कमल दहल प्रचंड भी तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा, कई अन्य राजनेता एक-एक बार इस पद पर आसीन हुए हैं, लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।