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Animal healthcare negligence in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश (uttar pradesh) के देवरिया (Deoria) जनपद के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पशु अस्पतालों की हालत ऐसी हो चुकी है कि उन्हें “अस्पताल” कहना भी मुश्किल है। करोड़ों की लागत से बनी आलीशान इमारतें अब खंडहर बनती जा रही हैं, जबकि किसान अपने मवेशियों को लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
लंपी वायरस से बढ़ता खतरा
इन दिनों लंपी वायरस का प्रकोप जिले भर में तेजी से फैल रहा है। बड़ी संख्या में गाय और भैंस इस बीमारी की चपेट में आकर बीमार पड़ रही हैं और कई दम तोड़ चुकी हैं। ऐसे समय में पशु अस्पतालों का सक्रिय रहना सबसे जरूरी था, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है।
डॉक्टर और फार्मासिस्ट अस्पतालों से नदारद
जिन अस्पतालों में डॉक्टर और फार्मासिस्ट तैनात होने चाहिए, वहां महीनों से कुर्सियां खाली पड़ी हैं। जो डॉक्टर नियुक्त हैं भी, वे ड्यूटी पर शायद ही दिखाई देते हों। परिणामस्वरूप इलाज का जिम्मा अस्थायी कर्मचारियों और कम्पाउंडरों पर टिका है। कुछ अस्पतालों में तो ताले लटकते मिले, जिससे पशुपालकों की परेशानी और बढ़ जाती है।
खंडहर में तब्दील अस्पताल भवन
किसानों और ग्रामीणों की उम्मीदें जिन अस्पताल भवनों से जुड़ी थीं, वे अब जर्जरता की तस्वीर पेश कर रहे हैं। टूटी-फूटी खिड़कियां, जंग खाए दरवाजे, दीवारों पर सीलन और चारों ओर गंदगी ये दृश्य बताते हैं कि करोड़ों की लागत से बनी इमारतें रखरखाव के अभाव में कबाड़ बन चुकी हैं। न तो सफाई की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं।
किसानों का गुस्सा और प्रशासन की चुप्पी
स्थानीय किसानों और पशुपालकों में गहरी नाराजगी है। उनका कहना है कि विभागीय अधिकारियों से कई बार शिकायत की गई, लेकिन किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी। एक किसान ने आक्रोश जाहिर करते हुए कहा कि पशु मर रहे हैं, लेकिन प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता। इस लापरवाही ने न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई है, बल्कि लोगों का सरकारी तंत्र से भरोसा भी कमजोर किया है।