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मृत आत्मा की भटकन से कैसे मिले छुटकारा? पितृ दोष निवारण के उपाय और पूजा विधि

Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय अत्यंत पवित्र और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह काल हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक 15 दिनों का होता है। इन दिनों को पितरों को समर्पित किया गया है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं।

Written By: Shivashakti narayan singh
Last Updated: 2025-08-27 21:51:07

Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय अत्यंत पवित्र और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह काल हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक 15 दिनों का होता है। इन दिनों को पितरों को समर्पित किया गया है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर अपने वंशजों से मिलने आती हैं। यदि परिवारजन उन्हें तर्पण और पिंडदान से संतुष्ट करते हैं तो वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। इसीलिए पितृ पक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य, जैसे विवाह या गृह प्रवेश आदि नहीं किया जाता, बल्कि सादगीपूर्ण जीवन जीकर पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

पितृ पक्ष में मृत्यु होना शुभ या अशुभ?

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि यदि किसी की मृत्यु पितृ पक्ष के दौरान हो जाए तो यह शुभ होती है या अशुभ? शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है।प्राकृतिक मृत्यु यदि पितृ पक्ष में हो तो इसे शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस समय मृत्यु होने पर आत्मा को सहज ही मोक्ष की प्राप्ति होती है और मृतक पितरों की श्रेणी में शामिल होकर दिव्य लोक में स्थान पाता है। पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान स्वर्ग लोक के द्वार खुले रहते हैं, ऐसे में मृत्यु होने पर आत्मा को स्वर्ग में प्रवेश का अवसर मिलता है। इसलिए इस काल में प्राकृतिक रूप से मृत्यु को सौभाग्यशाली माना गया है।

पितृ पक्ष में अकाल मृत्यु और उसका प्रभाव

पितृ पक्ष में यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु (Untimely Death) हो जाए तो इसे अशुभ माना जाता है। अकाल मृत्यु का अर्थ है

दुर्घटना,

आत्महत्या,

हत्या,

या किसी अन्य अप्राकृतिक कारण से असमय प्राणों का चले जाना।

धर्मग्रंथों में कहा गया है कि ऐसी मृत्यु होने पर आत्मा को शांति नहीं मिलती। वह भटकती रहती है और उसे परलोक गमन में बाधाएं आती हैं। आत्महत्या करने वालों की स्थिति और भी जटिल मानी गई है, क्योंकि आत्महत्या को घोर पाप बताया गया है। माना जाता है कि पितृ पक्ष में ऐसा कदम उठाने वाले की आत्मा को कहीं ठिकाना नहीं मिलता और वह लंबे समय तक अशांत रहती है।यही कारण है कि ऐसे मामलों में मृतक के परिवार को भी पितृ दोष (Pitru Dosh) का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष के प्रभाव से घर-परिवार में अशांति, आर्थिक हानि, स्वास्थ्य समस्याएं और संतान से जुड़ी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।

अकाल मृत आत्माओं की शांति और विशेष उपाय

पितृ पक्ष में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु अकाल रूप से हो जाए तो उसका अंतिम संस्कार सामान्य विधि से नहीं किया जाता। इसके लिए कुछ विशेष धार्मिक नियम बताए गए हैं ,ऐसी आत्माओं का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान घर पर न करके नदी किनारे किया जाता है।शास्त्रों में विशेषकर गया जी (बिहार) में जाकर पिंडदान करने का महत्व बताया गया है। गया के विष्णुपद मंदिर और फल्गु नदी के तट पर तर्पण करने से अशांत आत्मा को शांति मिलती है, कहा जाता है कि यहां किया गया श्राद्ध 14 पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष प्रदान करता है।

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. india News इसकी पुष्टि नहीं करता है

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